रहे आसमानों में उड़ते मगर....
रहे आसमानों में उड़ते मगर
ना छोड़े निशा अपने कदमों के,
इस ज़मीन पर उड़ता ही रहा,
एक मकसद की तालाश में,
शायद मिल जाए मकसद मेरा,
बादलों के बीच इस नीले आसमान में,
ना मिला कोई मकसद,
ना मिला कोई मुझ जैसा,
यहां वहां उड़ता ही रहा मैं,
मुझे न थी खबर अपनी,
ना फिक्र मुझे अपनो की,
बस एक ख्वाइश थी,
उड़ता रहूं पंछियों की तरह,
जैसे खुले विचार मेरे,
सिर्फ़ आसमान में ही उड़ते रहा,
ना कभी मैने अपनी भी ख़बर ली...
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