ज़िन्दगी कहाँ है तू...

ज़िन्दगी कहाँ है तू...
फिर रहा हूं खोजता हुआ तेरा पता,
ना मिले तेरे कदमों के निशा,
मुझे धरती और आकाश पर,
ढूंढा तुझको जेहन में अपने,
न मिली तू लाख जतन के बाद भी,
होश संभाला जबसे मैंने,
साथ तुझे ही पाया खुद के,
अब ऐसी क्या हुई मुझसे गलती,
भूल समझ के अपना ले मुझे,
लौट के आ जा पास मेरे,
मैं कब से तेरी राह देखूँ,
अपने पास बुला ले मुझे,
ज़िन्दगी कहाँ है तू...

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