मां मेरी मुझे समझती नही...

मां मेरी मुझे समझती नही, बचपन में जिसे मेरी हर गलती में, अच्छाई नजर आती थी आज उन्हे ही, मेरे हर अच्छे काम गलतियां ढूंढना अच्छा लगता है, मैं जितना भी करूं उनकी खुशी के लिए, उन्हे उतना ही वो कम लगता है,
माना के मैं कभी कभी गुस्सा करता हूं, पर उन्हे वो मेरा उन्हपर चिलाना लगता है, मेरी हर बात का गलत मतलब निकालना अच्छा लगता है, उनको मेरा व्यवहार सुहाता नही और मेरी निन्दा करना अच्छा लगता है, दूसरो के सामने मुझे नीचा दिखाना अच्छा लगता, मैं क्यों परेशां सा रहना लगा हूं, अब तो कभी पूछती भी नही, जब मैं कोई गलती करता था तो टोकती थी मुझे, अब मैं उन्हे कुछ कहूं तो उन्हे टोकना लगता है, घर को मैं घर बनाना चाहता हूं पर उन्हे घर में रहना मजबूरी सा लगता है, पहले हंसते खेलते थे हम एक दूसरे के साथ, आज उन्हे मेरे साथ लड़ना झगड़ना फिर मेरी गलतियां गिनाना अच्छा लगता है, जानना चाहता हूं मेरी गलती क्या है पर उन्हे मुझसे न बता कर दूसरो को बताना अच्छा लगता है, मैं कितनी भी कोशिश करलूँ उन्हे खुश रखने की पर कमी रह ही जाती है हमेशा, और उन्हे ही याद दिलाना अच्छा लगता है, मां मेरी मुझे समझती नही, समझे तो घर मेरा शायद घर बन जाए, पर उन्हे वो सब दूसरो को बताना अच्छा लगता है, बातें करके एक दूसरे से गलत फेमी मिटाई जा सकती है, पर उन्हे गलतफेमिया बरकरार रखना अच्छा लगता है, सबके माता पिता साथ देते है अपने बच्चो का हर खुशी में उनकी और उनके फैसलों में पर मुझे तो प्रत्सहन भी नही मिलता, मैं क्या करूं कोई तो मुझे समझाए जरा क्योंकि मां मेरी मुझे समझती नही।

Comments

Popular posts from this blog

रात की कालिमा धुल गई

The most beautiful gift of nature is,