शहर जैसे....
शहर जैसे,
मेहतवकांशा से भरा हुआ एक घड़ा हो जैसे, अपनो की भीड़ में भी अकेलापन का एहसास कराता हुआ, शहर को देखा तो लगा जैसे किसी दौड़ का हिस्सा हो, एक दूसरे इंसान को पीछे छोड़ने की होड़ करता हुआ, शहर जैसे आम आदमी का धैर्य परखता हुआ, शहर जैसे मासूमों का बचपन छिनता हुआ जैसे, गरीबों का खून चूसता हुआ खटमल हो जैसे, शहर जैसे किसी के सपनो को डसता हुआ सांप,
शहर जैसे दूसरो की सफलता से जलता और ईर्ष्या करता हुआ।
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