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किस-किस,

किस-किस से छुपाए तुम्हें हम ए हमसफर मेरी आंखों से रूह तक बस तुम ही तुम हो...

मदहोश,

मदहोश करती है मुझको मौजूदगी तुम्हारी मोहब्बत भरा ये दिल मुझसे संभलता नहीं।

जज़्बात बयां करते हैं,

जज़्बात बयां करते हैं अल्फ़ाज़ों में छुपी हर बात उनकी ख़ामोशी में कई राज़ गेहरे है अभी

उनकी,

उनकी गुस्ताख निगाहों ने तब्लीग़ ही कुछ यू की सोचे समझे बिना मैं ईमान महोब्बत पर ले आया

जेहेन में

जेहेन में झूठी वफ़ाओ का अलाप जलने दो अरसा गुज़र गया पलकों को भीगते भीगते। 

इतना भी न,

इतना भी न रूठो   तुम हमसे ए हमसफर, हर लम्हा हमें पराया सा लगने लगता है।