फिर क्यों रोना,
फिर क्यों रोना
क़िस्मत को अपनी जब
बदल पाना उसको को मेरे
बस की बात नहीं क्या
करूं जब मेरे दिल के
नही समझता जज़्बात
कोई करता हूं बातें अपनी
खामोशी से जब पूछता ही
नही मेरा हाल कोई फिर
क्यों रोना ज़िंदगी में जब
नही देता मेरा साथ कोई।
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