ख़ता मेरी थी,

ख़ता मेरी थी,
ये कबूल किया मैंने, जो दिल के हाथों मजबूर होकर,
ऐतबार जो तुम पर कर बैठे, बिना कुछ सोचे समझे,
बातो में आकर तुम्हारी, शर्मिंदा किया खुद को सारे आम,
तुम्हारी खातिर न की परवाह दुनियां की,
मैंने अपनी मोहोब्बत को तुम्हारे नाम कर दिया, मोहब्बत ने तुम्हारी मुझे बदनाम कर दिया....

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